मधेपुरा। ग्रामीण क्षेत्रों में सर्दी-खांसी-बुखार से लोग परेशान, सरकारी अस्पताल दूर होने की वजह से झोलाछाप डाक्टर की हो रहे बल्ले-बल्ले

🔼दूसरी लहर में कई मौतों के बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं बरती जा रही सतर्कता। आलमनगर (मधेपुरा)। तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, मगर यह आंकड़े झूठे हैं और दावा किताबी है। यह पंक्तियां कोरोना महामारी प्रखंड के गांवों पर सौ फीसदी लागू होती है। कई जगह के शमशान में चिता पर चटकती लकड़ियांं इस बात का गवाह है कि कई गांवों से हर रोज चिताऐं धधक रही है। उसकी वजह कोरोना महामारी मानी जा रही है। घर-घर लोग बीमार हैं, लेकिन न तो लोग जांच करा रहे हैं और न ही सतर्क है। गांवों में कोरोना का मखौल उड़ाया जा रहा है। लेकिन मौत हर रोज झपट्टा मार रही है। गांवों में सर्दी-खांसी-जुकाम से पीड़ित लोगों की जांच यदि हो जाए तो कुछ न कुछ लक्षण इससे मिलते नजर आऐंगे। मगर न तो पीड़ित जांच की जहमत उठा रहे हैं और न ही उनके द्वारा सतर्कता बरती जा रही है। गांव का ऐसा घर नहीं नहीं जहां बुखार-खांसी-जुकाम सहित अन्य लक्षण वाले लोग न हो। बुखार का कहर ऐसा है कि कोई गांव ऐसा नहीं जहां बुखार का मरीज नहीं हो। बुजुर्गों की माने तो यह अभी के मौसम में आम बात है। धीरे-धीरे अब गांव के भी लोग कोरोना महामारी से डरने लगे...