मधेपुरा। मंहगाई की मार से किसान परेशान, टूट रही कमर
🔼पीले सोने की कम हो रही चमक, कीमत नहीं मिलने से किसान मायूस।
🔼महंगाई से मक्का किसानों को हो रही परेशानी, नहीं खरीद पा रहे खाद व कीटनाशक।
आलमनगर (मधेपुरा)।
कोरोना की मार से परेशान किसानों की महंगाई ने कमर तोड़कर रख दी है। मक्का किसानों को खाद, पानी, कीटनाशक आदि की खरीदारी में दिक्कत हो रही है। कर्ज लेकर किसान किसी प्रकार खरीदारी कर रहे हैं। ताकि इस बार ऊपज अधिक हो तो किसी प्रकार आर्थिक स्थिति में सुधार आए। मक्का को किसान पीला सोना भी कहते हैं। लेकिन इस बार कोरोना व उपर से कम कीमत मिलने से इसकी चमक फीकी पड़ गई है। जबकि मक्का क्षेत्र के किसानों की समृद्धि का आधार है। वहां के मक्के की फसल पर इतना आधारित है कि बच्चों की पढ़ाई से लेकर बिटिया की शादी, साल भर का भोजन, इलाज सहित अन्य जरूरतों को पूरा करते हैं।
खासकर बाढ़ प्रभावित जिले के आलमनगर,चौसा,पुरैनी, उदाकिशुनगंज में मक्के की फसल ही यहां के किसानों का अजीविका का आधार माना जाता है। बाढ़ के कारण या मक्के की फसल के अलावा बृहद पैमाने पर कोई अन्य फसल नहीं लगा पाते हैं। लेकिन पिछली बार तैयार मक्का नहीं बिक पाने व उचित मूल्य नहीं मिलने के कारण यहां के किसान निराश है। मक्के की फसल को नुकसान झेलना पड़ा था।
🔼पटवन में हो रहा अधिक खर्च:-- निर्जला सिंह, पूर्व जिला परिषद सदस्य ,आलमनगर।
डीजल की कीमत बढ़ने की वजह से सिंचाई पर अधिक खर्च हो रहा है। एक बीघा में लगे मक्के की फसल को पटवन कराने के लिए एक बार में 14 से 16 सौ से रुपए खर्च हो रही है। एक फसल तैयार करने में कम से कम 5 बार पटवन करना होता है। यानी एक बीघा में ₹8000 सिर्फ पटवन में ही खर्च हो जाते हैं।
🔼इंजीनियर नवीन निषाद, पूर्व विधानसभा उम्मीदवार कहते हैं--
सरकार किसानों को लेकर संवेदनशील नहीं है।इस क्षेत्र के किसान को प्रत्येक वर्ष बाद की वजह से जहां काफी नुकसान उठाना पड़ता है। महामारी की वजह से दूसरे राज्य के व्यापारी इस क्षेत्र में नहीं आ पाने से किसानों को आधा से भी कम कीमत में अपने मक्के की फसल बेचना पड़ता है। इस वजह से किसानों को काफी नुकसान हो रहा है। सरकार को मक्के की खरीद की व्यवस्था करनी चाहिए।
प्रखंड कांग्रेस अध्यक्ष महेश मोहन झा उर्फ अमर झा ने कहा कि एक बीघा फसल तैयार करने में लगभग बीस हजार लागत आता है। इस क्षेत्र के अधिकांश किसान महाजन से पूंजी उधार लेकर खेती करते हैं । फसल तैयार होने के बाद उसे बेचकर महाजन को चुकता करते हैं। शेष बचे हुए रुपए से सालों भर घर चलाना पड़ता है लेकिन अब लागत मूल्य भी नहीं निकल पा रहा है।
रिपोर्ट : कन्हैया महाराज की एक रिपोर्ट।
Comments
Post a Comment
मान्यवर पाठकमित्र,
आपके द्वारा संवाद को पढ़ना हमें बेहतर लगा।
आपका दैनिक आजतक (वेब मीडिया) में हम स्वागत करते हैंं।
सी.के.झा
प्रधान संपादक
दैनिक आजतक